इस्पात एवं ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार किया
92वीं जयंती पर विशेष
जन्म से किसान, कर्म से उद्योगपति, हृदय से समाजसेवी बाऊजी श्री ओमप्रकाश जिन्दल जी ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी और असंख्य देशवासियों के प्रेरणास्रोत बन गए। वे सच्चे कर्मवीर थे, जिन्होंने हमेशा बाधाओं में ही आगे बढ़ने का रास्ता ढूंढ़ निकाला। उनकी हिम्मत, कर्तव्यपरायणता, राष्ट्र और समाज के प्रति निष्ठा पूरी मानवता के लिए एक मिसाल है और यही वजह है कि उन्हें इस्पात जगत के पुरोधा, स्वच्छ राजनीति के शिखर पुरुष, जरूरतमंदों के मसीहा और सामाजिक विकास के जननायक के रूप में सदैव याद किया जाता है। आज उनकी 92वीं जयंती पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है।
बाऊजी श्री ओपी जिन्दल जी का जन्म 7 अगस्त, 1930 को हरियाणा के हिसार स्थित गांव नलवा में हुआ था। उनके पिता श्री नेतराम जिन्दल एक साधारण किसान थे और उनकी माता श्रीमती चंद्रावली देवी गृहिणी थीं। उनमें बचपन से ही कुछ नया करने की ललक थी। एक बार उनके गांव के स्कूल के अध्यापक ने देखा कि इस छात्र का मन पुस्तकों से ज्यादा मशीनों में रमता है, उन्होंने यह बात उनके पिता श्री नेतराम जी को बताई। खेतों में चल रहे रहट हों या गांव के आसपास से गुजरती गाड़ियां, उस छात्र के मन में मशीनों के प्रति आकर्षण सभी को चकित कर देता था। किशोरावस्था में प्रवेश करने के साथ ही इस जोशीले नवयुवक में अपने सपने साकार करने की भावना प्रबल होने लगी। मशीनों और टेक्नोलॉजी के प्रति उनके जुनून ने काम करने के नए-नए तरीके खोजने की उनकी लालसा और बेचैनी को और बढ़ा दिया और साधारण माहौल में लालन-पालन के बावजूद श्री ओपी जिन्दल मात्र 20 साल की उम्र में ही निकल पड़े भारत की आर्थिक आजादी के लिए एक नया इतिहास रचने।
श्री ओपी जिन्दल ने सबसे पहले पूर्वी भारत की यात्रा की जो तत्कालीन भारत का ऐसा एकमात्र स्थान था, जहां उद्योगों के लिए तमाम संभावनाएं और अवसर मौजूद थे। 1952 में कोलकाता प्रवास के दौरान उन्होंने सड़क किनारे पड़े पाइपों पर “मेड इन इंग्लैंड” लिखा देखा और उसी समय उनके मन में सवाल उठा कि यह “मेड इन इंडिया” क्यों नहीं हो सकता। यही वो मोड़ था जहां स्वावलंबी भारत की कथा की भूमिका शुरू हुई। 1952 में ही उन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए कोलकाता के पास लिलुआ में एक पाइप कारखाना की स्थापना की। भारत के बेहद सम्मानित औद्योगिक घरानों में से एक ओपी जिन्दल ग्रुप की यात्रा इसी के साथ शुरू हुई।
लिलुआ में पाइप और सॉकेट की फैक्टरी स्थापित कर वे न सिर्फ देश बल्कि विदेश में भी लोकप्रिय हो गए। लेकिन उन्होंने अपनी जन्मभूमि की सेवा का व्रत लिया था इसलिए 1959 में वे वापस हिसार आ गए और एक छोटी-सी यूनिट के साथ अपनी औद्योगिक यात्रा आगे बढ़ाई। 1962 में उन्होंने हिसार में जिन्दल इंडिया नामक पाइप फैक्टरी की स्थापना की, जहां बने पाइप से देश के अनेक राज्यों में बुनियादी ढांचे का विकास हो रहा है। इस कंपनी को आज जिन्दल इंडस्ट्रीज के नाम से पुकारा जाता है। इसके बाद उन्होंने 1970 में जिन्दल स्ट्रीप्स नामक कंपनी खोली और राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में मजबूती से अपने कदम आगे बढ़ाए। फिर जिन्दल सॉ, जेएसडब्ल्यू, जिन्दल स्टेनलेस और जेएसपीएल जैसी कंपनियों की स्थापना कर बाऊजी श्री ओपी जिन्दल एक अंतरराष्ट्रीय शख्सियत बन गए।
बंगाल चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने नवंबर, 2004 में भारतीय इस्पात उद्योग में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित ‘‘लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड‘‘ से सम्मानित किया। प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय पत्रिका “फोर्ब्स” ने उन्हें 13वां सबसे अमीर भारतीय खिताब दिया।
एक स्वप्नदर्शी
आज भारत की जो चमकती तस्वीर हमारे सामने है, उसका सपना कुछ महान स्वप्नदर्शियों ने गुजरे कल में देखा था और उसे अपनी दूरदृष्टि, मेहनत और लगन से साकार किया। श्री ओपी जिन्दल जी ऐसे ही एक महान स्वप्नदर्शी थे, जिन्होंने इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भरता के माध्यम से आधुनिक और मजबूत भारत का सपना देखा। उनके दृढ़ विश्वास और सकारात्मक सोच ने उनके सपनों को हकीकत में बदला। उन्होंने दीर्घकालिक सामाजिक मूल्यों का निर्माण करने वाली उद्यमशीलता पर विचार किया, जो उद्यमियों की नई पौध तैयार करने में मार्गदर्शक बना।
श्री ओपी जिन्दल की भाषा हिम्मत और दृढ़निश्चय की थी। उन्होंने उस समय सपनों को ललकारा जब दुनिया उन्हें अविश्वास की नजरों से देख रही थी। जहां दूसरे लोग दीवार देख रहे थे, वहां उन्होंने दरवाजा देखा और अपनी नियति अपने हाथों से लिखी, अपने विश्वास को हकीकत में बदलने का काम किया। अनुकरणीय निष्ठा और उत्साह से उस महान व्यक्ति ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
एक नेता
एक चमत्कारी प्रेरक उद्योगपति, एक राजनीतिक नायक, आदर्शवाद और व्यावहारिकता के पथप्रदर्शक, अपने कामगारों के इकलौते ‘यूनियन‘ लीडर और न जाने कितने उपनाम उनकी कीर्ति का बखान करते हैं। संक्षेप में कहें तो श्री ओपी जिन्दल ‘जनता के आदमी‘ थे, जिनकी लोगों की नब्ज पर मजबूत पकड़ थी, जिनके लिए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। यह उनके नेतृत्व की सफलता और लोगों से मिले अपार स्नेह का ही नतीजा था कि उन्होंने चार राजनैतिक चुनावों (तीन विधानसभा व एक लोकसभा) में शानदार जीत हासिल की। बाऊजी की सोच थी कि राजनीति में निचले स्तर पर भ्रष्टाचार से आम आदमी को कष्ट होता है, इसी कारण वे 1991 में सक्रिय राजनीति में आए और हिसार से विधायक निर्वाचित हुए। 1996 में वे कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए और केंद्र में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में भागीदार बने। उनकी सोच थी कि दलित, पिछड़े एवं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के उत्थान से देश का सामाजिक विकास संभव है। उनका स्पष्ट मानना था कि कमजोर लोगों के हाथ मजबूत होंगे तभी हमारा देश भी मजबूत होगा। उन्होंने जरूरतमंदों के लिए अपने दरवाजे सदैव खुले रखे। हरियाणा के ऊर्जामंत्री के साथ-साथ उन्होंने कई महत्वपूर्ण ओहदों पर कुशलतापूर्वक काम किया, जिससे वे अपने देश के लिए समग्र रूप से योगदान करने में सफल हुए और राष्ट्र को गौरवान्वित किया।
एक पिता और लोगों के अभिभावक
श्री ओपी जिन्दल एक पिता, दार्शनिक, मार्गदर्शक और इन सबसे ऊपर अपने बच्चों के लिए एक आदर्श प्रेरणास्रोत थे, जो न केवल जिन्दल परिवार में पूजनीय थे अपितु एक ऐसे औद्योगिक समूह के संस्थापक थे, जो राष्ट्र निर्माण की जोत प्रज्ज्वलित कर रहा है। एक पिता के रूप में उनकी भूमिका केवल अपने चार बेटों और पांच बेटियों तक सीमित नहीं थी बल्कि उन्होंने अपने सभी कर्मचारियों और लोगों के लिए एक पोषक पिता की विशाल भूमिका को भी पूरी जिम्मेदारी और ईमानदारी से निभाया। एक अनुशासन प्रिय पिता के रूप में श्री ओपी जिन्दल ने शायद ही कभी अपने प्यार का इजहार किया हो लेकिन उनके हावभाव में सभी के प्रति अपार स्नेह झलकता था। आज उनके बच्चे अपनी सफलताओं का श्रेय अपने बाऊजी के उन अनकहे संदेशों को देते हैं, जो उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में उदाहरणों से प्रस्तुत किया।
यह बाऊजी का दिया हुआ संस्कार ही है, जो उनके बेटे श्री पृथ्वीराज जिन्दल, श्री सज्जन जिन्दल, श्री रतन जिन्दल और श्री नवीन जिन्दल न सिर्फ सफल व्यवसायी हैं बल्कि जमीन से अपने जुड़ाव के लिए भी जाने जाते हैं। आज उनकी तीसरी पीढ़ी सुश्री स्मिनू जिन्दल, श्री पार्थ जिन्दल, श्री अभ्युदय जिन्दल और श्री वेंकटेश जिन्दल उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए आगे आए हैं।
जनकल्याण
बाऊजी का मानना था कि वह उद्योग सफल नहीं हो सकता, जिसके आसपास का समाज विफल हो इसलिए उन्होंने “लोग प्रथम” की नीति अपनाई। यही वजह रही कि जनसेवा उनके जीवन का अनिवार्य अंग बन गया। उन्होंने हर उस छोटी चीज के मूल्य को भी समझा, जो जिन्दगी ने उन्हें दिया था और इनमें सबसे महत्वपूर्ण था कठिन और सूझबूझ से किये गए कठिन परिश्रम के महत्व को समझना। वे किसी को बताए बगैर मदद करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने न केवल उन कार्यों के लिए लाखों रुपये दान कर दिए, जिनमें उन्हें सामुदायिक विकास की झलक दिखाई देती थी बल्कि जरूरतमंदों की भी सदैव दिल खोलकर मदद की।
यही वो सोच थी जिसके तहत उन्होंने हिसार में 1968 में 500 बिस्तरों वाला एनसी जिन्दल अस्पताल खोला, जिसे आज मिनी एम्स के नाम से पुकारा जाता है। इसी तरह हिसार के अग्रोहा में महाराजा अग्रसेन जी के नाम पर उन्होंने प्रथम मेडिकल कॉलेज की स्थापना की जो आज हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के तीन करोड़ लोगों की उम्मीद की किरण बन गया है।
शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने दिल्ली में एनसी जिन्दल पब्लिक स्कूल और हिसार में लड़कियों की शिक्षा के लिए विद्यादेवी जिन्दल आवासीय विद्यालय खोला। उनका मानना था कि शिक्षा के माध्यम से ही समाज का विकास संभव है इसलिए उन्होंने गुणवत्ता युक्त शिक्षा पर सदैव जोर दिया। शिक्षा के क्षेत्र में देश को अग्रणी बनाने की दिशा में बाऊजी के दिखाए हुए मार्ग पर चलते हुए उनके बेटों ने अनेक शैक्षिक संस्थान खोले, जिनमें श्री नवीन जिन्दल द्वारा हरियाणा के सोनीपत में स्थापित ओपी जिन्दल ग्लोबल यूनिवर्सिटी आज देश का अग्रणी निजी विश्वविद्यालय है। यह न सिर्फ भारत के 20 शीर्ष “इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस” में शामिल है बल्कि क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भी अग्रणी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में गिना जाता है। इसी तरह रायगढ़ स्थित ओपी जिन्दल यूनिवर्सिटी स्टील इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मील का पत्थर है और नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। मोदी सरकार की कौशल विकास की नीति के अनुरूप छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड में स्थापित ओपी जिन्दल कम्युनिटी कॉलेज ने लाखों युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया है। इसी तरह ओपी जिन्दल स्कूल के माध्यम से माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों की प्रतिभा निखारने का काम भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
देश के विकास के सपनों को हकीकत में बदलने वाले, व्यावहारिक ज्ञान की जोत जलाने वाले, स्वदेशी मशीनों का ईजाद कर देश में आर्थिक विकास की नई लहर बहाने वाले, सतत विकास की सोच और असंख्य लोगों के लिए उन्नति के द्वार खोलने वाले बाऊजी श्री ओपी जिन्दल जी ने 31 मार्च 2005 को अपनी सांसारिक यात्रा पूरी की लेकिन उनके विचार आज भी हमारे पास हैं, हमारे साथ हैं। उन्होंने हमें मेहनत, हिम्मत और स्वच्छ राजनीति की जो विरासत दी, उसपर चलकर हम देश और देशवासियों की सेवा करते रहें, यही उन्हें हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।