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सूरजपुर में प्रतापपुर के जंगल में मिला हथिनी का शव, ग्रामीणों ने दी थी सूचना
अम्बिकापुर. केरल में कुछ दिन पहले ही एक गर्भवती हथिनी को लोगों ने पटाखा खिलाकर मार डाला था। अब छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में 20 माह की गर्भवती हथिनी की लिवर की बीमारी से मौत हो गई है। इससे हाथियों पर निगरानी रखने वाले भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों और अफसरों की लापरवाही पता चलती है। बताया जा रहा है कि समय रहते बीमारी पता चल जाता तो इलाज संभव था। वहीं लिवर में इंफेक्शन की वजह हथिनी के तालाबों का दूषित पानी पीना बताया जा रहा है।
हैरान करने वाली बात यह है कि हाथियों की निगरानी करने में लगे वैज्ञानिक और अफसर हाथिनी के बीमार होने के बारे में पता नहीं लगा सके। जबकि इसके लिए सरकार सालाना 2 करोड़ से अधिक खर्च करती है। इससे यह माना जा सकता है कि निगरानी दल की लापरवाही से एक हाथिनी की जान चली गई। बता दें कि प्रतापपुर इलाके के ग्राम गणेशपुर के जंगल में सोमवार की शाम हाथियों की दहाड़ ग्रामीणों ने सुनी। सुबह उधर देखा तो हथिनी की लाश पड़ी थी। इसकी जानकारी वन अधिकारियों को दी गई। डॉ. महेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि पोस्टमार्टम में हथिनी के पेट में 20 माह का बच्चा मिला है। वह भी मादा था, जिसकी गर्भ में ही मौत हो गई थी। कई महीने पहले हथिनी के लिवर में इंफेक्शन शुरू हुआ होगा। वहीं लीवर में पानी भर गया था। इसके चलते मौत की वजह लीवर इंफेक्शन ही था।
हाथियों की देखरेख पर सालाना 2 करोड़ खर्च
- 22 हाथियों की सूरजपुर जिले में पांच साल में हो चुकी है मौत, फिर भी अफसर नहीं दिखा रहे गंभीरता
- 24 माह का हथिनी का गर्भधारण काल होता है, ऐसे में करना चाहिए थी उसकी देखभाल
- 20 माह के गर्भ से थी हथिनी, विभाग को नहीं थी इसकी जानकारी, 4 माह बाद होनी थी डिलीवरी
6 माह में 7 हाथियों की हो चुकी है मौत
6 माह में साथ हाथियों की मौत हुई है। इसमें सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले में 4, बलरामपुर में 2 और जशपुर में एक की मौत हुई है। ये मौत 6 माह के भीतर हुई है। वहीं पिछले 5 साल में अकेले सूरजपुर जिले में 22 हाथियों की जान जा चुकी है।
150 से अधिक सिस्ट देख डॉक्टर भी हैरान
डॉक्टरों ने बताया कि पीएम पता लगा कि हथिनी के लिवर में 150 सिस्ट थे। जो कि इतनी संख्या में उन्होंने किसी जानवर में नहीं देखे। अब ऐसे में वन विभाग के उस दावे पर सवाल उठ रहे हैं जो इसकी मॉनिटरिंग करने का दावा करता है।
तालाबों के पानी का कराएं ट्रीटमेंट
डॉ.महेंद्र पांडेय ने बताया कि ऐसे हालात में सरकार और वन विभाग को उन तालाबों और जल स्रोतों की सफाई के साथ ट्रीटमेंट कराना चाहिए, ताकि हाथियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम न हो। इसके साथ ही हाथियों के लीवर और किडनी आदि खराब न हो।
वाइल्ड लाइफ वालों ने भी नहीं दी जानकारी
“हथिनी झुंड में रहती थी, इसके कारण उसके बीमार होने के बारे में पहले पता नहीं चला, वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिक भी 15 दिन पहले चले गए। उनके कामकाज से अफसर संतुष्ट नहीं थे। उनका पेमेंट रोक दिया गया था। उन्होंने भी हथिनी के बीमार होने के बारे में नहीं बताया था। वे सिर्फ उनके विचरण रूट के बारे में बताते थे। पोस्टमार्टम में उसके पेट में ज्यादा चारा भी नहीं मिला।”
-एसएस कंवर, सीएफ, सरगुजा संभाग