सर्दियों में बढ़ जाते हैं सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर के केस..मौसमी डिप्रेशन खतरनाक, खुद को अलग-थलग नहीं रखे, खुले में रहें : डॉ. अजगल्ले

रायगढ़ 11 दिसंबर: मौसम बदलने के साथ-साथ हमारे खाने-पीने से लेकर पहनावे तक का रुटीन बदल जाता है। इस सबके चलते हमारे मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हम मानसिक तौर पर परेशान होने लगते हैं। कभी-कभी यह बदलाव हम पर कुछ ज्यादा ही भारी पड़ जाता है। मेडिकल की दुनिया में इसे सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर कहा जाता है।

 

मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल रायगढ़ के मनोचिकित्सक डॉ. राजेश अजगल्ले  कहते हैं  ”अभी कोरोना चल रहा है और सर्दी भी आ चुकी है, ऐसे में सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर का जोखिम ज्यादा है। खासतौर पर उनके लिए, जो कोरोना के चलते पहले से ही तनाव, डिप्रेशन या अकेलेपन का शिकार हैं। कुछ लोगों को सीजन एफेक्टिव डिसआर्डर रहता है जो सिर्फ सीजन में ही होता है। बाइपोलर डिसआर्डर वाले लोगों को ज्यादातर गर्मियों में एफेक्टिव डिसआर्डर का सामना करना पड़ता है सर्दियों में डिप्रेशन व हाइपरटेंशन वाले लोगों को दिक्कत होती है। कुछ लोगों को जेनेटिक रहता है जिन्हें दवाईयां दी जाती है। ऐसे लोगों को बंद कमरे में ज्यादा नहीं रहना चाहिए खुले में रहने से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।“

गैर संक्रामक रोगों के जिला नोडल अधिकारी डॉ. टीके टोंडर की माने तो “मौसम की वजह से होने वाले बदलावों से हमारी मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ता है। इसके चलते गुस्सा, चिड़चिड़ापन और तनाव भी होने लगता है। यह कई बार डिप्रेशन की वजह भी बनता है यानी मौसम बदलने से भी डिप्रेशन हो सकता है। ऐसे मानसिक असंतुलन की वजह से जो तनाव और डिप्रेशन होता है, उसे ही सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर कहते हैं। सर्दियों की शुरुआत में शुरू होने वाला यह डिसऑर्डर यूं तो गर्मी में भी हो सकता है, लेकिन गर्मी की तुलना में इसके मामले सर्दियों में ज्यादा सामने आते हैं। इसके अलावा पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इसके लक्षण ज्यादा देखने को मिलते हैं।“

 

धूप की कमी सबसे बड़ी वजह : डॉ. अजगल्ले

डॉ. राजेश अजगल्ले बताते हैं, “सीजनल डिसऑर्डर की कई वजहें होती हैं, धूप की कमी इसका सबसे बड़ा कारण है। सर्दियों में कई दिनों तक धूप नहीं निकलती, जिसके चलते शरीर में नेचुरल विटामिन डी नहीं पहुंचता। यह लोगों को चिड़चिड़ा बना देता है, लेकिन इसकी और भी बहुत सारी वजहें होती हैं। अगर आपको मौसम बदलने से पहले ही मानसिक या शारीरिक समस्या है तो इसका जोखिम और भी ज्यादा हो जाता है। इससे बचने के लिए विटामिन डी सबसे ज्यादा जरूरी है। विटामिन डी शरीर में सेरोटॉनिन का लेवल बढ़ा देता है। यह हमारे शरीर में पाया जाने वाला एक केमिकल होता है, जो हमारे मूड को कंट्रोल या संतुलित रखता है। इसकी कमी होने से हम जरूरत से ज्यादा रिएक्ट करने लगते हैं।“

 

सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर के लक्षण

सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर के कई लक्षण होते हैं। इसमें मानसिक लक्षण सबसे ज्यादा सामने आते हैं। इसके शारीरिक लक्षण भी हैं, लेकिन डॉक्टर्स कहते हैं कि आप मानसिक लक्षणों से छुटकारा पा सकते हैं तो शारीरिक लक्षण अपने आप ही गायब हो जाएंगे। इसमें बहुत ज्यादा मूड डायवर्ट होता है। जिसे हम मूड स्विंग भी कहते हैं। चिड़चिड़ापन जरूरत से ज्यादा होने लगता है। पीड़ित लगातार छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव में रहने लगता है और बात-बात पर गुस्सा आना आम है। इस स्टेज में भूख नहीं लगती, आलस आता है, शरीर सुस्त रहता है, लेकिन नींद भी नहीं आती। जब ये सारी समस्याएं बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं तो ये डिप्रेशन में भी बदल जाती हैं। इससे उबरने में काफी समय लगता है।


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