अंबिकापुर. छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में तीसरी हथिनी की मौत हो गई। गणेशपुर के उसी जंगल में गुरुवार सुबह एक और हथिनी का शव मिला है। सड़क से महज 200 मीटर दूर जंगल में शव पड़ा था। बदबू आने पर ग्रामीणों ने वन विभाग को इसकी सूचना दी। मादा हाथी का शव देख आशंका जताई जा रही है कि उसकी 5 दिन पहले ही मौत हो चुकी थी। मौत का कारण स्पष्ट नहीं है। विभाग का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकेगा।
राजपुर रेंज के अतौरी जंगल से आया है प्यारे हाथी का दल
बताया जा रहा है कि बलरामपुर जिले के राजपुर रेंज के अतौरी जंगल में 6 जून को प्यारे हाथी का दल आया था। यहां से होते हुए गणेशपुर की ओर चला गया। आशंका है कि उसी दौरान हथिनी अस्वस्थ होने की कारण चलने में पिछड़ गई होगी और बाद में उसकी मौत हो गई। वन विभाग को आशंका है कि 6 जून को ही हथिनी की मौत हो चुकी थी। फिलहाल, शव का पोस्टमार्टम किया जा रहा है। अतौरी जंगल जाने के लिए अफसर रवाना हो गए हैं।
हर बार मादा हाथी की ही मौत, सवालों के घेरे में
सूरजपुर जिले के जिस गणेशपुर जंगल में गुरुवार सुबह शव मिला है, वहां मादा हाथियों के मरने का सिलसिला दो दिन पहले शुरू हुआ था। बुधवार को तालाब से कुछ दूरी पर मादा हाथी का शव मिला था। उसके पास ही कीटनाशक के पैकेट भी मिले और मुंह से झाग निकल रहा था। इससे पहले मंगलवार को भी कुछ मीटर दूरी पर हथिनी का शव बरामद हुआ था। दोनों ही मादा हाथियों की मौत का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है।
अब तीन मादा हाथियों की मौत सवालों के घेरे में है। हर बार यही निशाने पर क्यों हैं। अमूमन दांत के लिए शिकारी हाथियों का शिकार करते हैं, लेकिन वह भी नर हाथी होता है। मादा हाथी के दांत नहीं होने से शिकार नहीं करते हैं। देश में जहां भी मादा हाथियों की मौत सामने आई है, वो नर हाथियों के संघर्ष या बच्चे को नुकसान होने की स्थिति में ही मिली है। ऐसे में लगातार हो रही मादा हाथियों की मौत किसी शरारती तत्व की करतूत हो सकती है।
दल का लीडर प्यारे 6 साल में 59 लोगों को मार चुका
वनकर्मियों के अनुसार, जिस दल की मादा हाथियों की मौत हुई है, यह प्यारे हाथी का दल है। प्यारे हाथी पिछले 6 सालों में 59 लोगों को मार चुका है। ग्रामीणों के अनुसार, कोई सामने आया तो बचना मुश्किल है। रात में टाॅर्च दिखाने पर वह दौड़ाकर मारता है। इससे पहले दोनों हथिनी की मौत उस तालाब के आसपास ही हुई है। इसे हाथियों के लिए ही वन विभाग ने बनवाया था, जिसे वो गांवों में न जाएं। जंगल से निकलकर हाथी रोज तालाब में पानी पीने के लिए आते हैं।