कृषि उत्पादों की प्रमाणीकरण की सुविधा अब इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में उपलब्ध: कृषि उत्पादों के निर्यात को मिलेगा बढ़ावा
गांवों के रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में अब कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित प्रसंस्करण तकनीक का होगा उपयोग
गौठानों में गोबर से जैविक खाद के निर्माण, बिजली उत्पादन और वैल्यू एडीशन के कार्य में वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीक का बढ़ रहा उपयोग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में लगभग 30 करोड़ रूपए लागत के विकास कार्यों का लोकार्पण
कृषि विज्ञान केन्द्र रायपुर, कृषि महाविद्यालय रायगढ़, एवं उद्यानिकी महाविद्यालय जगदलपुर के नवनिर्मित भवन, नॉलेज सेंटर, फाईटोसेनेटरी लैब, तथा जैव विविधता संग्रहालय का लोकार्पण
16 कृषि महाविद्यालयों में निर्मित ई-क्लासरूम का शुभारंभ: 8 फसलों की उन्नत प्रजातियों के बीज की लॉचिंग
रायपुर, 08 अक्टूबर, 2021, मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कहा है कि कृषि का विकास और किसानों का कल्याण छत्तीसगढ़ सरकार की सर्वाेच्च प्राथमिकता है। कृषि के क्षेत्र में नई तकनीकों के विकास और इसे किसानों तक पहुंचाने के कार्य में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। छत्तीसगढ़ के कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने में आज से कृषि विश्वविद्यालय में प्रारंभ हो रही फाईटोसेनेटरी लैब का महत्वपूर्ण योगदान होगा। गांवों के रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में अब कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित प्रसंस्करण तकनीक का उपयोग किया जाएगा। गौठानों में गोबर से जैविक खाद के निर्माण, बिजली उत्पादन और वैल्यू एडीशन के कार्य में वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री श्री बघेल आज इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत लगभग 30 करोड़ रूपये की लागत से निर्मित भवनों एवं अन्य अधोसंरचनाओं का लोकार्पण करने के बाद कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय परिसर स्थित नवनिर्मित कृषि विज्ञान केन्द्र भवन, अक्ती जैवविविधता संग्रहालय, नवनिर्मित नॉलेज सेंटर भवन एवं रिकार्डिंग स्टूडियो तथा फाइटोसेनेटरी प्रयोगशाला के लोकार्पण के साथ वर्चुअल रूप से उद्यानिकी महाविद्यालय जगदलपुर एवं कृषि महाविद्यालय रायगढ़ के नवनिर्मित महाविद्यालय भवन, बालक छात्रावास एवं कन्या छात्रावास भवनों और 16 कृषि महाविद्यालयों में निर्मित ई-क्लासरूम का लोकार्पण किया।
इस अवसर पर उन्होंने धान, करायत, सोयाबीन, मक्का और रसभरी सहित 8 फसलों की उन्नत प्रजातियों के बीजों तथा विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई चावल से प्रोटीन और ग्लूकोज को अलग करने की तकनीक का लोकार्पण किया। कार्यक्रम में कृषि मंत्री श्री रविन्द्र चौबे, विधायक श्री सत्यनारायण शर्मा, छत्तीसगढ़ राज्य कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र शर्मा, शाकम्बरी बोर्ड के अध्यक्ष श्री राम कुमार पटेल, मुख्यमंत्री के सलाहकार श्री प्रदीप शर्मा, कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटिल भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में विधायक श्री प्रकाश नायक, श्री रेखचंद जैन, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बोर्ड के सदस्य श्री बोधराम कंवर सहित अनेक कृषि वैज्ञानिक और प्राध्यापक वर्चुअल रूप से शामिल हुए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की खेती-किसानी को नयी दिशा देने के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा उठाए जा रहे कदमों को आज और मजबूती मिल रही है। महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के अनुरूप गांवों को स्वावलंबी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। गांवों को स्वावलंबी बनाने में कृषि वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए तकनीक विकसित की गई है। उसका उपयोग गांवों में स्थापित किए जा रहे रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में किया जाएगा। कृषि उत्पादों और लघु वनोपज उत्पादों के प्रसंस्करण से किसानों की आय में वृद्धि होगी और लोगों तक शुद्ध कृषि उत्पाद पहुंचेंगे। इन उत्पादों की गुणवत्ता और शुद्धता में छततीसगढ़ अग्रणी रहेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के कृषि क्षेत्र में एक मजबूत वैज्ञानिक-अधोसंरचना का निर्माण करना हमारी प्राथमिकताओं में रहा है। उन्होंने कहा कि किसान और विज्ञान एक-दूसरे के जितने करीब आएंगे कृषि-क्षेत्र की समृद्धि उतनी ही तेजी से बढ़ेगी। राज्य में कृषि पद्धति के सुधार, फसल विविधीकरण के विस्तार, उत्पादन में बढ़ोतरी और वैल्यू एडीशन के माध्यम से किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए हमने राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक-संगठनों से भी एमओयू किए हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कोदो-कुटकी-रागी जैसी लघु धान्य फसलों को बढ़ावा देने के लिए हाल ही में मिशन मिलेट शुरु किया गया है। इसके लिए आईआईएमआर के साथ अनुबंध किया गया है। इसी तरह लघु वनोपजों के वैल्यू एडीशन से लेकर गौठानों में गोबर से जैविक खाद और बिजली के उत्पादन तक की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिकों को ज्ञान और अनुसंधानों का लगातार उपयोग कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में कृषि वैज्ञानिक और किसान मिलकर जो काम कर रहे हैं, उसकी सराहना आज राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है। आज छत्तीसगढ़ प्रदेश पूरे देश को रास्ता दिखा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज जिस अक्ती जैव विविधता संग्रहालय का लोकार्पण किया गया है, उसमें धान की लगभग 24000 किस्मों, तिंवरा की 1009, अलसी की 2000 किस्मों का प्रदर्शन किया गया है। इस संग्रहालय में विभिन्न किस्मों की कुल 30,878 किस्मों का प्रदर्शन किया गया है। इसके अलावा किसान भाइयों की लगभग 500 से अधिक प्रजातियों का पंजीयन भारत सरकार में कराया गया है। ये प्रजातियां भी जैव विविधता संग्रहालय में प्रदर्शित की गई हैं। इन प्रजातियों का उपयोग नयी प्रजातियों के विकास के लिए होगा। विश्वविद्यालय बनने के बाद बाद से आज तक विभिन्न फसलों की कुल 154 प्रजातियों का विकास किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ की कृषि-उपज और कृषि-उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भी हमारी सरकार निरंतर काम कर रही है। अब तक छत्तीसगढ़ के कृषि उत्पादों तथा खाद्य पदार्थों के प्रमाणीकरण की सुविधा उपलब्ध नहीं थी, लेकिन विश्वविद्यालय में फाइटोसेनेटरी प्रयोगशाला के लोकार्पण के बाद किसान भाइयों को यह सुविधा भी उपलब्ध हो जाएगी। फसल प्रमाणीकरण के बाद वे अपनी उपज और उत्पादों की बिक्री विदेशों में भी कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय के नये नॉलेज सेंटर में मोबाइल एप तैयार किए गए हैं, जिनसे किसान भाई नयी-नयी जानकारी प्राप्त कर अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ शासन की योजनाओं के बारे में भी वे जानकारी लेकर अपनी आय बढ़ा सकेंगे।
कृषि मंत्री श्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ कृषि के क्षेत्र में सबसे समृद्ध राज्य बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि राज्य के बजट से लगभग 25 से 30 हजार करोड़ रूपए धान खरीदी के माध्यम से किसानों को पहुंचा रहे हैं। कृषि विश्वविद्यालय में विकसित अधोसंरचना किसानों, वैज्ञानिकों और छात्रों के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगी। कार्यक्रम में कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटिल ने स्वागत उद्बोधन दिया। इस अवसर पर कृषि वैज्ञानिक, विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और वर्चुअल रूप से छात्र-छात्राएं भी कार्यक्रम में शामिल हुए।