पहला आकलन बीसीजी नामक संस्था ने तैयार किया है . इसमें दो परिस्थितयां दी गई हैं. पहले के मुताबिक़ लॉक डाउन के बिना 36 लाख लोग बीमार हो चुके होते जबकि 1,20,000 लोग जान गंवा चुके होते. वहीं , दूसरे के मुताबिक़ 70 लाख लोग बीमार हो गए होते और 2,10,000 लोग जान गंवा चुके होते.
दूसरा आकलन पीएचएफआई नामक संस्था ने पेश किया है . संस्था ने बीमार का तो आंकड़ा नहीं दिया है लेकिन उनके मुताबिक़ 78000 लोगों की मौत हो चुकी होती.
तीसरे आकलन के मुताबिक़ 23 लाख लोग बीमार हो चुके होते जबकि 68000 लोगों की मौत हो चुकी होती .
चौथे आकलन के मुताबिक़ 15.9 लाख मामले सामने आ गए होते और 51000 लोग अपनी जान गंवा चुके होते . सरकार के मुताबिक़ इसे कुछ स्वतंत्र विशेषज्ञों ने तैयार किया है .
पांचवा आकलन सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने प्रतिष्ठित भारतीय सांख्यिकी संस्थान के साथ तैयार किया है . इसके मुताबिक़ अगर देश में लॉक डाउन नहीं लगा होता तो 14 से 29 लाख लोग बीमार हो चुके होते जबकि 37000 से 78000 लोग अपनी जान गंवा चुके होते .
‘हमेशा के लिए लॉक डाउन संभव नहीं’
प्रेस कांफ्रेस में मौजूद नीति आयोग के सदस्य और सरकार की ओर से कोरोना पर बनाए गए एमपावर्ड ग्रुप एक के अध्यक्ष डॉ वी के पॉल ने कहा कि लॉक डाउन ने अपना मक़सद काफ़ी हद तक हासिल किया है . उनके मुताबिक़ लॉक डॉउन ने न सिर्फ बीमार होने और जान देने वालों की संख्या पर ब्रेक लगाई बल्कि सरकार को कम समय में इस महामारी से लड़ने की दिशा में तैयार होने का भी समय दिया . हालांकि डॉ पॉल ने कहा कि लॉक डॉउन हमेशा के लिए लागू नहीं रह सकता और देश के लोगों को सावधानियां बरत कर इससे लड़ाई लड़नी होगी.