हिमांशु गुप्ता दुर्ग रेंज के एडीजी थे। वे धमतरी, कोरबा समेत कई जिलों के एसपी रह चुके हैं और बस्तर, सरगुजा और दुर्ग के आईजी। हिमांशु लो प्रोफाइल में काम करने वाले आईपीएस हैं, व्यवहारकुशल भी। लेकिन, खुफिया चीफ बनने के बाद इस पर सवाल उठ रहे हैं कि जीरम नक्सली हमले के समय हिमांशु ही बस्तर के आईजी थे। तब तत्कालीन सरकार ने बस्तर के एसपी मयंक श्रीवास्तव को सस्पेंड कर दिया था। कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि आईजी हिमांशु को बचाया जा रहा है…..परिवर्तन यात्रा में कांग्रेस के दिग्गज नेता शामिल थे और उनकी यात्रा सुकमा और बस्तर जिलों से गुजरने वाली थी…यानि दो जिलों से….ऐसे में आईजी ने सुरक्षा तैयारियों की मानिटरिंग क्यों नहीं की।
खुफिया चीफ ताकतवर क्यों
खुफिया चीफ इसलिए ताकतवर होता है क्योंकि, सीधे वह सीएम हाउस के कनेक्शन में होता हैं। सूबे में होने वाली तमाम तरह की घटनाओं से सीएम को वाकिफ कराने का काम खुफिया चीफ करता है। सीएम दौरे से आते हैं तो खुफिया चीफ एयरपोर्ट पर ही उन्हें ब्रीफ कर देता है। वैसे, दिन में कम-से-कम एक बार खुफिया चीफ की सीएम से मुलाकात हो जाती है। राज्य में सिक्रेट मनी के रूप में नौ करोड़ रुपए हैं। इस राशि का कोई हिसाब नहीं होता। डीजीपी और खुफिया चीफ ही फोर्स पर खर्च करते हैं। राज्य के एक खुफिया चीफ ने रायपुर से लेकर दिल्ली तक इस पैसे से संपत्ति खड़ी कर ली।
डीजीपी प्रभावित
इस फेरबदल में डीजीपी डीएम अवस्थी प्रभावित हुए हैं। संजीव शुक्ला उनके करीबी रिश्तेदार हैं। उन्हें डीआईजी बनाकर कांकेर भेज दिया गया। जबकि, संजीव अब फील्ड की पोस्टिंग के लिए तैयार नहीं थे। वे जब रायपुर के एसपी थे, तभी वे कोशिश कर रहे थे कि पीएचक्यू में कोई पोस्टिंग मिल जाए। दूसरा, सरकार ने पवनदेव को पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन कम मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया है। कारपोरेशन में डीजीपी पदेन चेयरमैन होते हैं। राज्य बनने के बाद पहली बार किसी एडीजी को इसका सीएमडी बनाया गया है। जाहिर है, इससे डीजीपी प्रसन्न तो नहीं ही होंगे। अभी तक विश्वरंजन, अनिल नवानी, रामनिवास और एएन उपध्याय चेयरमैन रहे हैं। ये सभी डीजीपी थे।
बेमेल पोस्टिंग
पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन मूलतः पुलिस की निर्माण एजेंसी है। एडीजी पवनदेव को इसका सीएमडी बनाया गया है। कारपोरेशन की पोस्टिंग ठीक मानी जाती है…लक्ष्मीजी की कृपा बनी रहती है। उपर से सीएमडी हो तो सोने में सोहागा। लेकिन, पवनदेव की छबि उस तरह की नहीं है। उन पर इस तरह के ब्लेम कभी नहीं लगे। पवनदेव का इवेस्टिगेशन पार्ट बढ़िया है। पोलिसिंग भी। अब देखना है, पवन कारपोरेशन में कितना कुछ कर पाते हैं।
अजय सिंह की पोस्टिंग
सूबे के सबसे सीनियर आईएएस अफसर अजय सिंह को फिर से चीफ सिकरेट्री बनने की अटकलें परवान नहीं चढ़ सकी। लेकिन, उन्हें जो मिला, उसे कम भी नहीं आंका जा सकता। पहली बात तो राजस्व बोर्ड बिलासपुर से उनकी रायपुर वापसी हो गई। वो भी, राज्य योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन बनकर। इस पोस्टिंग का मतलब बहुतों को समझ में नहीं आया होगा। एक्स चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार इस पद पर रह चुके हैं। कैबिनेट मंत्री के समकक्ष इस पोस्ट पर आने का एक बड़ा मतलब यह भी है कि उन्हें अब पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। चार महीने बाद वे आईएएस से रिटायर होंगे तो जाहिर है, इस पोस्ट पर संविदा में कंटीन्यू कर जाएंगे। इस पोस्ट में कोई एज लिमिट भी नहीं है। है न ये दिवाली गिफ्ट।
कुजूर और केडीपी
निवर्तमान चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर और एडिशनल चीफ सिकरेट्री केडीपी राव में भले ही दो बैच का अंतर रहा। लेकिन, हैं दोनों गहरे दोस्त। दोनों एक ही दिन रिटायर भी हुए। केडीपी के लिए रिटायरमेंट अखरने वाला रहा होगा क्योंकि, उन्हें गुमनामी में मंत्रालय से बिदा होना पड़ा। दरअसल, नए चीफ सिकरेट्री को लेकर कुछ दिनों से खबरों का सेंसेक्स इतना हाई चल रहा था कि केडीपी की तरफ ज्यादतर मीडिया का ध्यान नहीं गया। बहरहाल, अब उत्सुकता इस बात की है कि दोनों को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिलेगी….और मिलेगी तो किसमें। फिलहाल, दो पोस्ट खाली है। एक सहकारी निर्वाचन आयुक्त। गणेशशंकर मिश्रा को कुछ दिन पहले इस पोस्ट से हटाया गया है। और, दूसरा है सूचना आयुक्त। एके सिंह के रिटायर होने के बाद से यह पद खाली है। केडीपी राव तो इन दोनों में से किसी में भी जा सकते हैं। लेकिन, सुनील कुजूर के लिए विकल्प सीमित हैं। चीफ सिकरेट्री से रिटायर हुए हैं, इसलिए सूचना आयुक्त पद उनके लिए छोटा हो जाएगा। फिर, सहकारी निर्वाचन भी एक्स सीएस के लायक नहीं हैं। गणेशशंकर मिश्रा प्रमुख सचिव से रिटायर हुए थे। याने प्रमुख सचिव या अधिक-से-अधिक एसीएस लायक यह पद है। एक चर्चा उनके रेरा में जाने की चल रही है। लेकिन, रेरा में कोई पद वैकेंट नहीं है। हो सकता है, उपर लेवल पर दूसरा गुणा-भाग चल रहा तो फिर नो कमेंट।
कमलप्रीत को ट्रांसपोर्ट
आईएएस के नए फेरबदल में सरकार ने डा0 कमलप्रीत सिंह को ट्रांसपोर्ट सिकरेट्री एवं ट्रांसपोर्ट कमिश्नर का जिम्मा भी सौंप दिया है। कमलप्रीत के पास पहले से फूड और जीएडी का आईएएस शाखा था। अब तीसरा, ट्रांसपोर्ट हो गया। कमलप्रीत बैलेंस एवं रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। कुछ महीने पहिले सरकार ने उनसे आबकारी विभाग लेकर फूड दे दिया था। यकीनन यह उन्हें अच्छा नहीं लगा होगा। मगर अब ट्रांसपोर्ट देकर सरकार ने उनका कद बढ़ा दिया है।
कल्लूरी को शिफ्थ
डा0 कमलप्रीत सिंह के ट्रांसपोर्ट सिकरेट्री एवं कमिश्नर बन जाने से एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर एसआरपी कल्लूरी को अब ट्रांसपोर्ट से शिफ्थ करना पड़ेगा। पहले मनोज पिंगुआ ट्रांसपोर्ट सिकरेट्री थे और कमिश्नर भी। पिंगुआ और कल्लूरी सेम बैच के आईएएस, आईपीएस हैं। दोनों का 94 बैच है। अब 2002 बैच के आईएएस कमलप्रीत इस विभाग के सिकरेट्री और कमिश्नर हो गए हैं। कल्लूरी और कमलप्रीत में आठ बैच का अंतर है। इस पोस्टिंग से जाहिर है, सरकार जल्द ही ट्रांसपोर्ट में फेरबदल करेगी।
मुझसे क्या भूल हुई…
2009 बैच के आईएएस समीर विश्नोई पिछली सरकार में दुखी थे, इसमें भी कोई अच्छा नहीं दिख रहा है। पिछली सरकार ने एक साल से भी कम में कोंडागांव कलेक्टर से हटाकर उन्हें निर्वाचन में भेज दिया था। दो साल से वे इलेक्शन में हैं। उनके बाद निर्वाचन में सुब्रत साहू और भारतीदासन आए। और, दोनों वहां से निकल गए। भारतीदासन सबसे किस्मती रहे। निर्वाचन में सबसे बाद में आए और सबसे पहिले निकल लिए। वो भी रायपुर कलेक्टर बनकर। अब तो सुब्रत साहू भी मंत्रालय लौट गए हैं। आईएएस में बच गए हैं अब सिर्फ समीर। चित्रकोट उपचुनाव के बाद वहां अब कोई काम तो बच नही गया है। सिर्फ यह गुनगुनाने के…मुझसे क्या भूल हुई….।
दिल भी जीता और….
छठ की छु्ट्टी देकर सीएम भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में लाखों की संख्या में रह रहे उत्तर भारतीयों का न केवल दिल जीत लिया बल्कि नगरीय निकाय चुनाव के लिए पार्टी की स्थिति मजबूत कर दी। भूपेश जमीनी नेता हैं…काफी स्ट्रगल करके उपर आए हैं। उनके हर फैसलों के अपने मायने होते हैं। उन्हें पता है कि बिहार, पूर्वांचल के लोगों के लिए छठ पर्व का क्या महत्व है। सीएम ने व्यस्ततम कार्यक्रमों में से समय एडजस्ट कर सूबे में सबसे आरगेनाइज ढंग से होने वाले बिलासपुर के छठस्थल पर जाकर छठ आरती में भी शामिल हो आए। छठ की छुट्टी बिहार और दिल्ली के अलावा कहीं नहीं होती। छठ महापर्व की छुट्टी के जरिये उत्तर भारतीयों का मान बढ़ाने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा स्टेट है। नगरीय चुनाव में लोग आखिर इसे याद तो रखेंगे ही।