आईआईटी बाम्बे की 3 सदस्यीय टीम है जिले के दौरे पर,चल रहे कार्यो का कर रही अध्ययन.. टेक्निकल इनोवेशन और कैपेसिटी बिल्डिंग पर रहेगा फोकस
रायगढ़, 18 फरवरी2022/ भारत की अग्रणी इंजीनियरिंग संस्थान आईआईटी बॉम्बे जिले में संचालित विभिन्न आजीविका गतिविधियों को बेहतर बनाने तकनीकी सहयोग व कंसल्टेशन प्रदान करेंगी। जिसमें आईआईटी बॉम्बे प्रमुख रूप से इन गतिविधियों की प्रक्रिया को आसान करने तकनीक विकास में सहयोग देंगी। जिससे उत्पादों में विविधता हो, तैयार उत्पादों की गुणवत्ता बढ़े तथा लागत घटा कर लाभ बढाया जा सके। इसके साथ ही आजीविका गतिविधियों से जुड़ी महिलाओं को समुचित तकनीकी प्रशिक्षण व व्यवसायिक ट्रेनिग देने जैसे पहलुओं पर भी काम किया जाएगा। कलेक्टर श्री भीम सिंह की पहल और सीईओ जिला पंचायत डॉ.रवि मित्तल के मार्गदर्शन में यह नवाचार शुरू किया जा रहा है। इसके लिए आईआईटी बॉम्बे के सेण्टर फॉर टेक्नोलॉजी अल्टरनेटीव्स फॉर रूरल एरियाज की प्रोफेसर बकुल राव के नेतृत्व में 3 सदस्यीय एक टीम जिले के दौरे पर है। यहाँ वे गौठानों और ग्रामीण इलाकों में महिला समूहों के काम तथा स्थानीय परम्परागत उत्पादों को तैयार किये जाने का अध्ययन कर रही हैं।
आईआईटी बॉम्बे की टीम ने कलेक्टर श्री भीम सिंह और सीईओ जिला पंचायत डॉ.रवि मित्तल के साथ आजीविका संवर्धन से जुड़े विभागों के जिलाधिकारियों के साथ बैठक कर जिले में संचालित विभिन्न गतिविधियों को तकनीकी रूप से बेहतर बनाने की संभावनाओं पर चर्चा की। जिसमें मुख्य रूप से बांस के उत्पाद से मजबूत व टिकाऊ फर्नीचर के साथ ही फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स श्रेणी के छोटे-छोटे उत्पाद जैसे पेपर क्लिप्स, सोप केस, वाटर बोतल आदि तैयार करना, जिससे बांस से अधिक से अधिक दैनिक जरूरतों वाले घरेलु उत्पाद तैयार कर इस विधा से जुड़े लोगों के लिए एक बड़ा बाजार तैयार किया जा सके। यह पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण पहल होगी। इसी प्रकार रेशम के कपड़े बनाने में जो धागे ताना-बाना में उपयोग होता है। उसमें बाना का धागा तो स्थानीय स्तर पर तैयार होता है। किन्तु मजबूत ताने के लिए अभी भी बुनकरों की निर्भरता विदेशी आयात पर है। ऐसे में रेशमी कपड़ों के लिए किफायती और मजबूत ताने को यहीं तैयार करने के लिए भी काम किया जायेगा। रायगढ़ जिला ढोकरा शिल्प कलाकृतियों के लिए भी प्रसिद्ध है। हालांकि इन कलाकृतियों को तैयार करने की प्रक्रिया लम्बी और जटिल है। 3 डी प्रिंटिंग तकनीक का सहारा लेकर इसे आसान बनाने पर भी चर्चा बैठक में हुई। जिससे कलाकृतियों को तैयार करने में लगने वाले समय और मेहनत को कम किया जा सके तथा तैयार उत्पादों की फिनिशिंग भी बढिय़ा हो। पैरा तथा गोबर से भी अलग-अलग प्रोडक्ट तैयार करने की संभावनाओं पर चर्चा की गई। आईआईटी बॉम्बे की टीम ने इस दौरान जमीनी स्तर गौठानों में जाकर वहां हो रहे काम को देखा। समूह की महिलाओं से बात की और उनके अनुभव जाने। कलेक्टर श्री सिंह और सीईओ जिला पंचायत डॉ.मित्तल व संबंधित विभागीय अधिकारियों से भी फीडबैक लिया। जिसके आधार पर आजीविका गतिविधियों के संचालन हेतु टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और प्रभावी वर्किंग प्रोसेस के जोड़ से एक सस्टेनेबल और लाभप्रद मॉडल तैयार किया जा सके। गौठानों में भी उपलब्ध स्थान व संसाधनों का बेहतर उपयोग कर समूहों के लिए उसे ज्यादा फायदेमंद बनाया जा सके। इसके साथ ही यहाँ तैयार किये जा रहे उत्पादों की बेहतर पैकेजिंग व मार्केट लिंकेज की दिशा में भी टीम काम करेगी।
रूरल डेवलपमेंट के लिए तकनीकी विकास का है लम्बा अनुभव
आईआईटी बॉम्बे से पहुंची टीम सेण्टर फॉर टेक्नोलॉजी अल्टरनेटीव्स फॉर रूरल एरियाज में काम करती हैं। 3 सदस्यीय इस टीम में प्रोफेसर बकुल राव, प्रोफेसर सुषमा कुलकर्णी और श्री यतिन दिवाकर शामिल हैं। टीम का ग्रामीण इलाकों में शिक्षा, हेल्थ, कृषि व जल संसाधन, महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण आजीविका संवर्धन, स्किल डेवलपमेंट, कृषि वानिकी, क्षेत्रों में देश के विभिन्न प्रदेशों में काम करने का 20 वर्षों से अधिक का अनुभव रहा है। जिसमें प्रोजेक्ट की डिजाइनिंग, इवैल्यूएशन और मॉनिटरिंग करना तथा इसके लिए आवश्यक तकनीक व वर्किंग मॉडल्स के विकास में भी इनका योगदान रहा है।