रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, भिलाई समेत लगभग पूरे प्रदेश में मानाया जाता है यह त्यौहार , स्थानीय इसे अक्ती पर्व कहते हैं, लॉकडाउन के बीच कुछ जोड़ों को मिली अनुमति तो सोशल डिस्टेंसिंग के साथ हुई शादी
रायपुर. अक्षय तृतिया का पर्व लॉकडाउन में मनाया गया। कोरोना संकट का असर इस त्यौहार पर भी पड़ा। मुख्य रूप से इस दिन को शादियों के लिए शुभ माना जाता है। सोने-चांदी या नई चीजों की खरीददारी भी होती है। मगर लॉकडाउन की पाबंदी के चलते रौनक नजर नहीं आई। बच्चों ने घरों गुड्डे गुड़ियों की शादी की। मास्क लगाकर बच्चों ने बड़ों के साथ मिलकर विवाह में होने वाली रस्मों को निभाया। प्रशासन से अनुमति लेकर कुछ जगहों पर शादी के कार्यक्रम हुए मगर यहां 10 लोगों को ही मौजूद रहने की अनुमति थी। किसान आज के दिन से बीजों की पूजा कर अपने खेतों में काम-काज की शुरूआत करते हैं।
क्या है मान्यता
पंडित दत्तात्रेय होस्करे ने बताया कि विवाह हिंदू मान्यता के मुताबिक 16 संस्कार में से एक संस्कार है। जिस घर में शादी होती है, वहां सुख और खुशी का माहौल होता है।
इसलिए अधिकांश लोग अक्षय तृतीया के दिन शादी करते हैं, हालांकि हर बार इस दिन शादी का मुहूर्त नहीं होता, मगर इस बार था। ऐसे में अब जिन घरों में युवक-युवती शादी योग्य नहीं होते वहां गुड्डे-गुड़ियों की शादी की जाती है। ऐसा करने से परिवार के सुखी होने की मान्यता है। सालों से यह परंपरा चली आ रही है। इससे छोटे बच्चों को शादी के संस्कार के बारे में पता चलता है वो रस्मों को समझते हैं। किसान यदि गेहूं की फसल कटी हो तो उसे भगवान को अर्पित करते हैं। गेहूं को सोने के समान माना गया है जो कि प्रकृति मनुष्य को देती है।
बारातियों का स्वागत सैनिटाइजर से
रायपुर जिले में प्रशासन ने 6 परिवारों को शादी की अनुमति शर्तों के साथ दी थी। शंकर नगर के सिंधु भवन, आर्य समाज टिकरापारा में कुछ जोड़ों ने शादी कर जिंदगी भर एक दूसरे के साथ रहने की कसम ली। प्रशासन की शर्त थी कि 10 लोग से अधिक इन आयोजनों में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। सिंधु भवन में शादी के दौरान लड़के और लड़की की तरफ से आए रिश्तेदारों का स्वागत सैनिटाइजर से हाथ धुलवाकर किया गया। सभी को मास्क भी दिए गए। दूल्हा और दुल्हन ने भी मास्क लगाकर ही फेरे लिए। आर्य समाज में हुई शादी में दूल्हा- दुल्हन और पंडित ही मौजूद रहे।
किसानों की बीज पूजा
कृषि से जुड़ी पुस्तकें लिख चुके रायपुर के गोविंद पटेल ने बताया कि इस दिन किसान बीज की पूजा करते हैं। दोने में मिट्टी लेकर उसमें धान के बीज रखे जाते हैं और इन्हें ईश्वर के अर्पित किया जाता है। महासमुंद के किसान गजेंद्र ने बताया कि किसान इसी दिन से अपनी खरीदी और अन्य कामों की शुरूआत करते हैं। बीच की पूजा के साथ उनका अंकुरण कैसा होगा यह भी देखा जाता है, जो कि इस त्योहार का वैज्ञानिक पहलू भी है। बालोद के सिराभांटा गांव में किसान अपने घरों से धान का बीज लेकर ठाकुर दाई पहुंचे। यहां पूजा के बाद बीज किसानों को पुजारी लौटाता है। इसी बीज को फिर किसान अपने खेतों में डालते हैं, यह शुभ माना जाता है।