बैंकों का विलय समस्या का समाधान नहीं, यह समस्या से किनारा करने जैसा

नई दिल्ली : भारतीय बैंकिंग प्रणाली को मजबूत और सुरक्षित करने के लिए बैंकों को आजादी के साथ काम करने और विकास करने की स्वायत्ता देना ही एक सूत्री समाधान है। नायक समिति की सिफारिशों के अनुसार सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी 50 फीसद से कम की जानी चाहिए। इसके लिए पब्लिक मार्केट में संभावनाएं तलाशने, नॉन कोर परिसंपत्तियों को बेचने और बलपूर्वक विलय जैसे विकल्प हो सकते हैं।

सरकार को बैंक के या अन्य सार्वजनिक उपक्रमों के दैनिक कामकाज को उन लोगों के हवाले छोड़ देना चाहिए जो उन्हें चलाने में माहिर हैं। बैंकिंग प्रणाली समग्र रूप से मूलभूत बदलाव के दौर से गुजर रही है। सार्वजनिक बैंकों के पास न तो संसाधन हैं और न ही आजादी। तकनीक की अलग चुनौती है। सरकारी हस्तक्षेप के चलते क्षमता और प्रतिभा की भी कमी है। ‘मिसिंग मिडिल’ के रूप में उभरे नए खिलाड़ियों ने उनके सामने बड़ी चुनौती पेश की है। उनकी बाजार हिस्सेदारी गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं और नए बैंक खा जा रहे हैं। आज भारत को मजबूत और सक्षम बैंक की जरूरत है। बड़े बैंक की उसे दरकार नहीं। बड़ा है तो बेहतर है-एक भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं। हमारे सभी बैंक एक साथ मिलकर भी वैश्विक बैंकों से बौने हैं।


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